मैं दुखी क्यों हूँ ?
मैं दुखी क्यों हूँ ? यह ऐसा सबाल है जो हम सभी ने सुना होता है। या तो किसी दोस्त से या फिर अपने आप से। आपका तो पता नहीं, पर मैं अपने आप से यह सबाल ना जाने कितनी ही बार पुछ लेती हूँ। मैं परेशान क्यों हूँ? मेरे ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है? कई बार तो यह समझ ही नहीं आता की मैं दुखी क्यों हूँ। मैं उस बात को भूल क्यों नहीं पा रही हूँ? क्या मैं गलत थी या सही? बगैरा-बगैरा। सारे सबालों के जबाब तो मुझे भी अभी तक नहीं मिले पर जितना अपने आपको समझने की कोशिश की है, और लोगो से बात करके, उनका लिखा हुआ पढ़कर उन्हे समझने की कोशिश की है उससे तो यही समझ आया है की, मैं अकेली नहीं हूँ जो परेशान है और ऐसे सबालों में उलझी हुई है। यहाँ लाखों की भीड़ में हर एक इंसान अकेला है। किसी ने क्या खूब लिखा है- " हर लम्बे सफर में अक्सर काँच का सामान टूट ही जाता है। हम में से हर एक के सीने में ऐसा ही कुछ काँच सा टूटा हुआ है। शायद उसी टूटी हुई चीज़ को हम दिल कहते हैं। " हर कोई अपने दिल में एक जख्म छिपाये फिर रहा है। अपने चेहरे पर झूठी मुश्कान लिए, अपने ही सबालों में उलझा हुआ सा, वो जो जोर - जोर से ठ