जीवन में निरंतरता का महत्व 

जीवन और मृत्यु की धाराएँ
समय का निरंतर बहाव 
सपनों से भरे बहते ये बादल
सभी कुछ तो बह रहे हैं
समानान्तर 
निरंतर
रुकना मानो प्रकृति के व्यवहार में नहीं
फिर भला हम क्यों रुके? 
फिर भला हम क्यों थमे? 
चलना ही होगा हमें 
हर समय 
हर पल
अग्रसर, तत्पर, निरंतर... 
-मनीष मूंदड़ा
हर व्यक्ति अपने जीवन में सफलता हासिल करना चाहता है। उस सफलता को पाने के लिए जो प्रयास करने पड़ते हैं वह भी करता है। किंतु जब हम कोई नया कार्य करना शुरु करते हैं तब हमें बहुत उत्साह महसूस होता है। मगर कुछ दिनों बाद जब हमारा सामना मुश्क़िलों से होता है, और हमें तुरंत सफलता दिखाई नहीं देती तब हमारा उत्साह कम होने लगता है, और हम कार्य बीच में ही छोड़ देते हैं। जिसके परिणामस्वरूप कार्य में निरंतरता नहीं रहती और हम हार जाते हैं।
इस कायनात का सीधा सा नियम है। निरंतर चलते रहना। जैसा की मनीष मूंदड़ा जी ने अपनी कविता में लिखा है की निरंतरता के कारण ही सृष्टि चक्र चल रहा है। निरंतरता ही कुदरत का आधार है। आपके शरीर के अंदर कई कार्य निरंतरता से चल रहे हैं, इसलिए आपका शरीर ज़िंदा है। प्रकृति में हर वस्तु, हर प्राणी, हर घटना निरंतर है। समय के साथ प्रकृति का बहाब निरंतर है। फिर हम क्यूं स्थिर रहें। 
हमें निरंतरता का महत्त्व समझना होगा। छोटे-छोटे कदम उठाकर सफल जीवन की राह पर चलना शुरू करना होगा आज से, अभी से, निरंतरता से। कोई भी जीवन कठिनाई के बिना मुमकिन नहीं है, लेकिन दृढ़ता और मन के सन्कल्प से यह जीवन सुखद और सार्थक हो जाता है। 
हमें अपने आप को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकालना होगा।
जब हमारा मन काम करने में नही लगता और हम कोई ना कोई बहाना बनाकर काम को टालने लगते हैं, तब हमारे काम में निरंतरता नहीं रह जाती और इस कारण हमारे हाँथ असफलता लगती है। जब भी आपको लगे कि मैं यह काम अब नहीं कर सकता तब स्वयं को एक सवाल जरूर पूछें, ‘मैं कम से कम कितने समय के लिए यह काम कर सकता हूँ?’ मन कहेगा, ‘सिर्फ पाँच मिनट के लिए’ तो मन को राज़ी कराते हुए वह काम पाँच मिनट के लिए क्यों न सही, ज़रूर करें।
कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप जीवन में कहां से शुरू करते हैं। अपने जीवन में जो आप चाहते हैं उस पर ध्यान केंद्रित करें, यह जाने कि आपको क्या करने का शौक है ,जो आपके जीवन को अर्थ और उद्देश्य देगा। अपने लिए अधिक सकारात्मक भविष्य की कल्पना करें, और निर्धारित करें कि आपको उस दृष्टि को वास्तविकता बनाने के लिए क्या करने की आवश्यकता होगी। 
निरंतरता से उठाए गए छोटे-छोटे कदम, इंसान को सफलता के शिखर पर ले जाते हैं। यह ना सोचे की मुझे आज ही अपनी मंजिल हासिल हो जाए। हर दिन का एक लक्ष्य निर्धारित करें और उस लक्ष्य को पूरा करें। इस प्रकार धीरे-धीरे आप अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होंगे। अपने मन को अपनी मुठ्ठी में रखें। मन कई बहाने बनाकर काम से छुटकारा पाना चाहता है। मगर इन सभी बहानों के विरुद्ध छोटा कदम उठाएँ ताकि आगे जाकर आप अपने जीवन में बड़ा परिवर्तन ला सकें।
संत कबीर ने कहा है की मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत। अर्थात् जीवन में हार या जीत केवल मन की भावनाएं हैं। यदि हम मन में हार मान गए, निराश हो गए तो हमारा हारना निश्चित है। और यदि हमने मन को जीत लिया यह दृड़ निश्चय कर लिया के हम निरंतर प्रयास करेगें तो पूरी कायनात में कोई भी आपको जीतने से नही रोक सकता। जीवन में कितना भी विशाल उद्देश्य क्यूँ ना हो मन के विश्वास और निरंतर प्रयास से प्राप्त किया जा सकता है। यदि उद्देश्य प्राप्ति का भरोसा ही नहीं होगा तो प्राप्ती कैसे होगी।




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